मुझे 2014 के चुनावों से पहले आर. एस. एस. से कई बार फोन
आया कि मैं उनसे जुड़ूँ। पर मैं नहीं गया। पर मैं उनकी लगन
की प्रशंसा करता हूँ। वह अपना काम बहुत लगन से करते हैं।
मैंने 2009-10 में बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकें
पढ़नी शुरू की। उनकी पुस्तकें पढ़ने के लिए मुझे हमारे शिक्षक
और हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्देशक माननीय कमल स्वरूप
जी ने प्रेरित किया था जो कि स्वयं ब्राह्मण हैं। बाबा साहिब जी
लेखनी से मैं इतना प्रभावित हुआ कि तब से लेकर आज तक,
कोई सात सालों से भी अधिक समय से बाबा साहिब जी के
विचारों को लेखों, वीडियों और पुस्तकों के माध्यम से लोगों
तक पहुंचा रहा हूँ। इस बीच मैंने बाबा साहिब जी से ही प्रेरित
हो कर वकालत की पढ़ाई भी पूरी की। परन्तु मेरी व्यक्तिगत
आर्थिक स्थिति बहुत निम्नन रही और ऐसी है भी। पर जब मैं
यह देखता हूँ कि मैंने यदि यह नहीं किया होता तो और कौन
करता ? जब मैं रुपयों की तुलना इस कार्य से करता हूँ तो मेरे
मन में ख़ुशी होती है कि मैंने बाबा साहिब जी के विचारों को
लोगों तक पहुँचाया। हालाँकि धन के लिए मैं फिल्मों में काम
करने अथवा कोई नए व्यवसाय करने की भी सोच रहा हूँ।
परन्तु धन अथवा सत्ता के लालच के लिए मैं बाब साहिब जी के
मिशन को बर्बाद नहीं कर सकता। क्या आप अपने पिता के
हत्यारों से हाथ मिला सकते हैं और कह सकते हैं कि सत्ता की
चाबी आपके हाथ में आ गई ? नहीं ! ऐसे करके आप खुद को
दूसरे के हाथ में दे रहे हैं, इससे सत्ता की चाबी दूसरे के हाथ
में जाएगी। पिता की हत्या का अर्थ है उनके विचारों की हत्या।
बाबा साहिब जी के विपरीत विचारधारा वाले संगठनों में जाना
उनके विचारों की हत्या करना है जो पिता की हत्या के समान है।
हमारे लोग बाबा साहिब जी की वजह से कुछ बन जाते हैं तो
उनकी विचारधारा से हट कर विरोधियों के खेमों में लालच के
लिए चले जाते हैं। मैं आर. एस. एस. (बीजेपी) और काँग्रेस को
भी यही कहूंगा कि वह ऐसे लोगों को लें पर सावधान रहें।
जो बाबा साहिब के नहीं हुए वह उनके भी कैसे होंगे ?
वैसे भी विभीषण का किरदार तो भारतीय साहित्य में इतना
गहरा लिखा है कि वह समाज का हिस्सा बन गया है। हमारे
लोग आर. एस. एस. (बीजेपी) और काँग्रेस में जा कर विभीषण
का ही कार्य करते हैं। ऐसे लोग केवल लालची हैं। एक सच्चा
सिपाही मर जाता है पर अपना सर झुकाता नहीं हैं।
बाबा साहिब जी का सच्चा अनुयायी सर काटनेवाला होता है
पर सर झुकानेवाला नहीं होता। और जिस दिन हमारे लोगों
(अनुसूचित जाति, जनजाति, और पिछड़े समाज) ने सर उठाना
सीख लिया, सत्ता ही नहीं, बल्कि आनेवाली सभ्यता भी हमारी
ही होगी। यहाँ सर उठाने और कटाने का अर्थ है अपनी विचारधारा
पर अडिग रहना और न झुकना। पाठक शाब्दिक अर्थ नहीं बल्कि
आंतरिक अर्थ पर ही ध्यान दें। - जय भीम, जय भारत, नमो बुद्धाय
- निखिल सबलानिया
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