Aarakshan @ Yadav Krishna- शुरूआती ४५-५० मिनट में तो संविधान की मर्यादा को तक पर रखते हुए आरक्षण के खिलाफ जितना भी अशोभनीय कहा जा सकता था, कहा गया है. अपने पक्ष में फैसला आने पर क्या किसी को खुशी मनाने का हक नहीं है, फिल्म में इसे एक अपराध की तरह दिखाया गया है. दिखाना था तो वास्तविकता ही दिखाते. आरक्षण का विरोध ही करना था तो खुल के करते. तब हिम्मत देखी जाती.
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